अभी अभी आदरणीय पंकज जी के ब्लॉग से सुख़नवर के जुलाई अगस्त 2010 अंक का लिंक मिला, आवरण देख कर ही मन कई साल पहले बचपन की यादों में खो गया, जब इसी तरह की कुछ रेखाएं खींच कर चित्रकला करने की कोशिश की जाती थी. सच है ना ये रेखाएं भी किसी ना किसी रूप में बचपन से लेकर उम्र भर हमसे जुडी रहती हैं, और हर बार इन रेखाओं का महत्व उतना ही रहता है, कम नहीं होता. अभी सिर्फ एक नज़र ही इस पत्रिका में सिमटे सुन्दर साहित्य पर डाली है, अभी आराम से पढना बाकि है. आदरणीय इस्लाम जी का मुझे इस अंक में स्थान देने का दिल से आभार. अगले अंक के लिए हार्दिक शुभकामनाये.
अभी पंकज सुबीर जी की मेल से इस पत्रिका के बारे मे जाना बहुत अच्छी लगी पत्रिका । इसकी सदस्यता के लिये वार्षिक चंदा भेज रही हूँ। कृप्या मुझे पत्रिका की सदस्यता दें। धन्यवाद।
4 टिप्पणियाँ:
अभी अभी आदरणीय पंकज जी के ब्लॉग से सुख़नवर के जुलाई अगस्त 2010 अंक का लिंक मिला, आवरण देख कर ही मन कई साल पहले बचपन की यादों में खो गया, जब इसी तरह की कुछ रेखाएं खींच कर चित्रकला करने की कोशिश की जाती थी. सच है ना ये रेखाएं भी किसी ना किसी रूप में बचपन से लेकर उम्र भर हमसे जुडी रहती हैं, और हर बार इन रेखाओं का महत्व उतना ही रहता है, कम नहीं होता.
अभी सिर्फ एक नज़र ही इस पत्रिका में सिमटे सुन्दर साहित्य पर डाली है, अभी आराम से पढना बाकि है. आदरणीय इस्लाम जी का मुझे इस अंक में स्थान देने का दिल से आभार. अगले अंक के लिए हार्दिक शुभकामनाये.
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अभी पंकज सुबीर जी की मेल से इस पत्रिका के बारे मे जाना बहुत अच्छी लगी पत्रिका । इसकी सदस्यता के लिये वार्षिक चंदा भेज रही हूँ। कृप्या मुझे पत्रिका की सदस्यता दें। धन्यवाद।
अभी तो सिर्फ़ देखी है पत्रिका और इस बार तो लग रहा है काफ़ी रोचक है इसलिये तसल्ली से पढूँगी और फिर अपने विचार प्रस्तुत करूँगी।
आपके ब्लॉग को आज चर्चामंच पर संकलित किया है.. एक बार देखिएगा जरूर..
http://charchamanch.blogspot.com/
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