सुख़नवर का मई जून 2010 अंक ( वर्ष-3, अंक-3 ) ऑनलाइन पढ़ें या डाउनलोड करें । अंक को ऑनलाइन पढ़ने के लिये ऊपर चित्र पर क्लिक करें या फिर यहां क्लिक करें । अंक को डाउनलोड करने के लिये यहां या फिर यहां पर क्लिक करके फाइल को डाउनलोड कर सकते हैं ।
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10 टिप्पणियाँ:
अभी अभी आदरणीय पंकज जी के ब्लॉग से सुख़नवर के मई जून 2010 अंक का लिंक मिला, आवरण देख कर ही मन खुश हो गया, बेहद सुन्दर और मनमोहक आवरण अपने पीछे उतना ही सुन्दर साहित्य समेटे हुए मिला. एक से बड कर एक गजलो, और कहानियों ने मन मोह लिया. अभी एक नज़र भर देखा है, अब आराम से पूरा पढना है. मुझे इस अंक में स्थान देने का दिल से आभार. अगले अंक के लिए शुभकामनाये.
regards
नए अंक का आवरण चित्र सचमुच लाजवाब है, बहुत पसंद आया
पत्रिका डाउनलोड कर रहा हूँ, पिछला अंक शानदार था इस अंक के लिए अग्रामी बधाई और शुभकामनाए
सीमा जी को भी बहुत बहुत बधाई
पहली बार आई हूँ……………बहुत ही बढिया अंक लगा…………………आराम से पूरी पढूँगी।
पहली बार आई हूँ……………बहुत ही बढिया अंक लगा…………………आराम से पूरी पढूँगी।
पहली बार आई हूँ……………बहुत ही बढिया अंक लगा…………………आराम से पूरी पढूँगी।
पहली बार आई हूँ……………बहुत ही बढिया अंक लगा…………………आराम से पूरी पढूँगी।
पहली बार आई हूँ……………बहुत ही बढिया अंक लगा…………………आराम से पूरी पढूँगी।
ाआज अन्धेरे की कोई शक्ल नही होती ……॥कहानी पढी ……………रोंगटे खडे हो गये ………………उस त्रासदी को कोई चाहकर भी नही भूल सकता और फिर वो जिसने झेला हो वो तो कभी भी नही………………मगर आज इस कहानी रुपी घटना ने सोचने को विवश कर दिया कि औरत सिर्फ़ एक देह के अलावा और कुछ नही होती हर रिश्ते के लिये……………जब पढकर दिल दहल गया तो जिस पर बीती होगी उसके लिए तो कोई सोच भी नही सकता और शायद उस दर्द को महसूस भी नही कर सकता आखिर कब तक ऐसे अमानवीय कृत्य होते रहेंगे और कब तक इंसान रूपी राक्षस अत्याचार करता रहेगा?ज्यादा कुछ कहने की स्थिति मे नही हूँ।
अभी तो बस देखा है सुख़नवर को। बहुत अच्छा लगा। पढ़ने के बाद दुबारा कमेंट करूँगा।
देवमणि पाण्डेय, मुम्बई
http://devmanipandey.blogspot.com/
Sukhanwar ko net ke madhyam se yahan videsh mein hasil karke bahut hi accha laga. Patrika mein vishay vastu bahut hi gyanvardak v pathneey hai. Shri Anware Islam ji v sampadakeey mandal ko meri badhayi sweekar ho.
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